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राजस्थान की सिंचाई परियोजनाएं (rajasthan ki sinchai pariyojana), प्रमुख नहरें, बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजनाएं – महत्वपूर्ण प्रश्‍न (MCQs), Short Notes, questions और Map 

Q.141 राजस्थान में तालाबों से सिंचाई के संदर्भ में कौन सा कथन गलत है?

  1. राजस्थान के दक्षिणी व दक्षिणी-पूर्वी भागो में तालाबो की संख्या अधिक होने का कारण वहां की भूमि पथरीली और वर्षा का अधिक होना है। 
  2. पश्चिमी राजस्थान में तालाबों से सिंचाई नगण्य है। 
  3. तालाबों से सिंचाई भीलवाड़ा जिले में सर्वाधिक होती है। 
  4. राजस्थान में तालाबों से सिंचाई लगातार बढ़ रही है। 

Ans. 4. राजस्थान में तालाबों से सिंचाई लगातार बढ़ रही है। 
Exp. – तालाबों के निर्माण एवं जल ग्रहण हेतु सर्वाधिक उपर्युक्त स्थल वे होते हैं, जहां भूमि का तल पथरीला हो, तीन या चारो ओर उच्च भूमि अथवा पहाड़िया हो तथा भूमि में जल रिसाव न हो। इस प्रकार की भौगोलिक दशाएं राजस्थान में दक्षिणी और दक्षिणी पूर्वी भाग में होने के कारण वहां तालाबो की संख्या अधिक है। सर्वाधिक तालाबों से सिंचाई भीलवाड़ा जिले में होती है, इसके बाद उदयपुर जिले में होती है। 1962-63 में 2.14 लाख हेक्टेयर भूमि पर तालाबों से सिंचाई होती थी, वही 2018-19 में केवल 35000 हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई हो रही है।  

Q.142 राजस्थान की नवीनतम जल नीति किस वर्ष अपनाई गई – (राजस्थान पुलिस कांस्टेबल 2018) 

  • 2022 
  • 2014 
  • 2015 
  • 2010 

Ans.  2010 
Exp. – राजस्थान की नवीनतम जल नीति को मंत्रिमंडल ने 17 फरवरी 2010 को मंजूरी दी। 

Q.143 राजस्थान की 13 नदी बेसिन में कुल सतही जल की संभाव्यता कितनी है? (Librarian 2016)

  • 8.42  मिलियन एकड़ फुट
  • 11.29 मिलियन एकड़ फुट
  • 15.86 मिलियन एकड़ फुट
  • 14.51 मिलियन एकड़ फुट

Ans. 15.86 मिलियन एकड़ फुट
Exp. – राजस्थान के आंतरिक जल स्रोत की सतही क्षमता अनुमानित 19,500 मिलियन क्यूबिक मीटर या 15.86 मिलियन एकड़ फुट है। 

Q.144 भारत के कुल सतही जल संसाधनों में राजस्थान का कितना प्रतिशत भाग है- (JEN सिविल डिग्री 2016)  

  • 1.70
  • 2.86
  • 1.16
  • 1 से कम

Ans. 1.16
Exp. – भारत का कुल सतही जल 1440 मिलियन एकड़ फुट में से राजस्थान का कुल सतही जल 15.86 मिलियन एकड़ फुट है। 

Q.145  निम्न में से कौन सी परम्परागत जल संरक्षण की विधि नहीं है – (कॉलेज व्याख्याता 2016)

  1. नाड़ी 
  2. खड़ीन 
  3. तालाब 
  4. टांका 

Ans. 3. तालाब 
Exp. – परम्परागत जल संरक्षण की विधियां नाड़ी, टोबा, टांका, कुंई/बेरी, खड़ीन, जोहड़, बावड़ी आदि होते है।

Q.146 कौनसी राजस्थान में जल सरंक्षण की परम्परागत विधि नहीं है – (JEN यांत्रिक/विद्युत डिग्री 2020)

  1. नाली 
  2. नाड़ी 
  3. टोबा 
  4. जोहड़

Ans. 1. नाली
Exp. – परम्परागत जल संरक्षण की विधियां नाड़ी, टोबा, टांका, कुंई/बेरी, खड़ीन, जोहड़, बावड़ी आदि होते है। 

Q.147 शेखावाटी के अन्त: प्रवाही क्षेत्र में निर्मित कच्चे जल स्रोत को किस नाम से जाना जाता है – (कनिष्ठ अनुदेशक वेल्डर 2019) 

  1. कुआँ 
  2. तालाब 
  3. कुण्ड 
  4. नाड़ा 

Ans. 4. नाड़ा 
Exp. – नाड़ी/नाड़ा मरुस्थल में एक पोखर (कच्चा जल स्रोत) होता है।  

Short Notes
राजस्थान में निम्नलिखित परंपरागत जल संरक्षण की विधियां सदियों से प्रचलित है – 
नाड़ी  – यह एक प्रकार का पोखर होता है, इसमें वर्षा का जल 7-8 माह तक संचित रहता है। पश्चिमी राजस्थान में सामान्यता प्रत्येक गांव में पोखर का निर्माण किया जाता है। 
टोबा – यह भी नाड़ी के सामान किन्तु अधिक गहरा होता है तथा पश्चिमी राजस्थान में पारंपरिक जल स्रोत के रूप में प्रचलित है। इसके जल का उपयोग पेयजल, पशुओं के लिए तथा सीमित सिंचाई के लिए किया जाता है। 
टांका – यह भी वर्षा के जल को संग्रह करने का साधन है, इसका प्रचलन मरूस्थली क्षेत्र में है। टांका या कुंडी या कुंड का निर्माण पेयजल हेतु किया जाता है। प्राय: सार्वजनिक स्थलों पर इसका निर्माण किया जाता है तो इनका निर्माण दूसरी और मकानों एवं संस्थानों आदि भी भी कराया जाता है। यह पूरी तरह ढका होता है। अतः जल वाष्पीकरण नहीं होता है। 
कुंई/बेरी – पश्चिमी राजस्थान में कुंई बनाने की परंपरा है, इन्हें बेरी भी कहते हैं इनका निर्माण तालाब के पास किया जाता है, जिससे इनके रिसाव का शुद्व पानी इसमें आता है।  बीकानेर और जैसलमेर जिलों में कुंई का प्रचलन अधिक है। 
खड़ीन – खड़ीन मिट्टी का बाँधनुमा अस्थाई तालाब होता है, जिसे ढाल वाली भूमि के नीचे बनाया जाता है तथा दो तरफ से पाल उठाकर तथा तीसरी और पत्थर की दीवार बनाई जाती है। इसमें यदि अतिरिक्त पानी आता है तो ऊपर से निकल जाता है। जैसलमेर के कृषक पालीवाल ब्राह्मण द्वारा इनका निर्माण 15वीं सदी में शुरू किया गया था और आज भी इस क्षेत्र में लगभग 500 खड़ीन है, जिनसे हजारों हेक्टेयर भूमि पर सिंचाई होती है। 
बावड़ी – एक सीढ़ीनुमा वृहत कुआं होता है, इसमें वर्षा के जल के अतिरिक्त भूमिगत जल का स्रोत भी होता है। शेखावाटी व बूंदी की बावड़ियां अपनी स्थापत्य कला के लिए प्रसिद्ध है।  
जोहड़ – शेखावाटी क्षेत्र में स्थानीय भाषा में कच्चे कुओं को जोहड़ कहते हैं l

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