मरुस्थल से संबंधित शब्दावली
बालसन (Bolsons) | मरुस्थल का वह भाग जो पर्वतों/चट्टानों से घिरा हुआ होता है तथा इनके मध्य जल इकट्ठा होने से बनी झीलें बालसन कहलाती है e.g सांभर झील |
प्लाया | वर्षा ऋतु में निर्मित खारे पानी की अस्थाई बड़ी झीले प्याला कहलाती है e.g डीडवाना झील |
रन/ढांड/टाट | थार मरुस्थल में बालुका स्तूपो के बीच में कहीं-कहीं निम्न भूमि मिलती है जिसमें वर्षा का जल भर जाने से अस्थाई झीलों व दलदली भूमि का निर्माण होता है जिन्हें रन (Rann) कहते हैं। |
नखलिस्तान(Oasis) | मरुस्थल क्षेत्र में जहां जल बेसिन पाए जाते हैं उसके चारों और हरियाली विकसित हो जाती है, जिसे नखलिस्तान(Oasis) कहते हैं। e.g लाठी श्रेणी क्षेत्र |
जोहड़ | शेखावाटी क्षेत्र में स्थानीय भाषा में कच्चे कुओं को जोहड़ कहते हैं l |
नाड़ी | मानव की दैनिक जरूरतों एवं पशुओं के पीने के लिए गांव के बाहर एक छोटा सा तालाब बना दे उसे नाड़ी कहते हैं l |
टोबा | नाड़ी को बीच में से और गहरा बना दे तो उसे टोबा कहते हैं l |
सर | बांगड़ प्रदेश में बालुका स्तूपो के मध्य पानी भरने से वहा पर छोटे तालाब बन जाते हैं जिन्हें सर या सरोवर कहते हैं e.g सालासर, परबतसर, जैतसर |
आगोर | प्राचीन काल में मरुस्थल मरुस्थल प्रदेशों के घरों में उपयोग लेने हेतु जल के टांके बनाए जाते थे जिन्हें स्थानीय भाषा में आगोर कहते हैं। |
बजादा | मरुस्थल में स्थित पर्वतीय क्षेत्र के नीचे निम्न भूमि वाले क्षेत्र को जहां पर्वतीय जल आकर समाप्त हो जाता है बजादा कहलाता है l |
बजेड़ा | करौली में पान की खेती को बजेड़ा कहते हैं* |
खड़ीन | मरुस्थल में प्रवाहित वर्षा जल को तीनों तरफ से छोटे बांध बनाकर संरक्षित करना खडीन कहलाता है l खड़ीन में पालीवाल ब्राह्मणों द्वारा रबी की फसल (सरसों, गेहूं, चना) की जाती है जिसे खड़ीन कृषि कहते हैं l खड़ीन कृषि सर्वाधिक जैसलमेर के उत्तर में होती है l |
नेहड़ | निरहत शब्द से नेहड़ शब्द बना है। जिसका अर्थ जल का समुद्र होता है। 100 साल पहले राजस्थान के बाड़मेर और जालौर जिलों में समुद्र का जल लहराता था अतः इस क्षेत्र को नेहड़ कहते हैं। |
हम्मादा | पोकरण, फलोदी और बालोतरा के मध्य स्थित एक चट्टानी त्रिभुजाकार मरुस्थल है। |
रेग | हम्मादा के चारों ओर स्थित पथरीला या कंकड़नुमा मिश्रित मरुस्थल है। |
खादर | वह क्षेत्र जहां नदियां प्रतिवर्ष बहती है और अपने साथ उपजाऊ मिट्टी बहाकर लाती है इस उपजाऊ मिट्टी से बनी मैदान को खादर कहते हैं। |
बांगर | वह क्षेत्र जहां नदियां प्राचीन काल में बहती थी और वर्तमान में वहां कोई नदी नहीं बहती है अतः पुरानी उपजाऊ मिट्टी धीरे-धीरे अनुपजाऊ मिट्टी बन गई अतः अनुपजाऊ मिट्टी के मैदान को बांगर कहते हैं। e.g शेखावटी प्रदेश |
वांगड़ | माही नदी का दक्षिणी मैदान (डूंगरपुर, बांसवाड़ा) अधिक गहरा व विच्छेदित क्षेत्र है। यह क्षेत्र पहाड़ियों से युक्त और कटा फटा होने के कारण इसे स्थानीय भाषा में वागड़ कहते हैं। |
बीड़ | शेखावटी क्षेत्र में पाए जाने वाले घास के मैदान को स्थानीय भाषा में बीड़ कहते हैं। |
बीहड़ | नदियों के द्वारा मिट्टी के कटाव (अवनालिका अपरदन) से बड़े-बड़े गड्ढे बन जाते हैं इन्हें स्थानीय भाषा में बीहड़ कहते हैं e.g चंबल के बीहड़ |
रोही | अरावली पर्वत माला के पश्चिम भाग से उतरती हुई उपजाऊ हरी पट्टियों को रोही के नाम से जाना जाता है। |